BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।

अथवा
भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक सद्भाव में निर्गुण संतों के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

भक्ति आन्दोलन

मध्यकाल में कई धार्मिक विचारकों तथा सुधारकों ने भारत के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से भक्ति को साधन बनाकर एक आन्दोलन प्रारम्भ किया जो 'भक्ति आन्दोलन। के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यद्यपि भारतीय जन-जीवन में नया नहीं था किन्तु इस्लाम की उपस्थिति से उसे वेग प्राप्त हुआ तथा यह जनान्दोलन में बदल गया।

दक्षिण भारत में भक्ति की अवधारणा उस समय सुदृढ़ पीठ पर प्रतिष्ठापित हुई, जब शंकराचार्य ने वेदांत या अद्वैत की विचारधारा का पुनः प्रवर्तन किया। शंकराचार्य के उपरान्त बारह तमिल वैष्णव सन्तों ने भक्ति को काफी लोकप्रिय बनाया। इसके आरम्भिक प्रणेता रामानुज थे, जिनके शिष्य रामानन्द भक्ति आन्दोलन को उत्तर भारत की ओर लाए।

भक्ति-आन्दोलन के कारण - ये निम्नवत् हैं-

1. हिन्दू धर्म में बढ़ती संकीर्णता - भारतीय समाज का धार्मिक आधार कमजोर होने लगा था। हिन्दू धर्म में कर्मकाण्डों की वृद्धि होती जा रही थी। जातीय स्तर पर भेदाभेद चरम पर था। वर्णसंकर जातियों में वृद्धि होती जा रही थी। मूर्तिपूजा, पर्दा प्रथा, स्त्री अशिक्षा, बाल विवाह, कन्या वध आदि समस्याएं हिन्दू धर्मानुयायियों में बढ़ती संकीर्णता का परिणाम थे। इसका कारण भारत में इस्लाम के पदार्पण के कारण हिन्दुओं में बढ़ती असुरक्षा की भावना थी।

2. इस्लामी संस्कृति का अभाव - प्राचीनतम हिन्दू संस्कृति और सभ्यता में एकीकरण की इतनी शक्ति थी कि देश के आरम्भिक आक्रान्ता, जैसे यूनानी, शक, हूण आदि भारतीयों में पूर्णरूपेण मिल गए और वे अपने एकात्म्य व अनन्यता को सम्पूर्णतया खो बैठे, परन्तु भारत के तुर्क और अफगान आक्रमणकारियों के साथ ऐसा नहीं हुआ। परन्तु सुदीर्घकाल के संसर्ग के परिणामस्वरूप, नवीन भारतीय मुसलमानों के समुदाय के विकास, मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में बस जाने से, हिन्दू स्त्रियों से विवाह, हिन्दू और मुस्लिम सन्तों और उनके अनुयायियों के पारस्परिक सम्पर्क, मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दू कलाकारों, शिल्पियों और साहित्यिकों के संरक्षण और उदार आन्दोलनों के प्रभाव के कारण हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के विचार और प्रथाओं को अपनाकर उनका समीकरण करने वाले थे। इस वजह से भी धार्मिक आन्दोलन का जन्म हुआ।

3. एकेश्वरवाद - शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के बहुदेववाद के विरुद्ध एकेश्वरवाद का बिगुल बजाया। यह बाद के समय में सफल नहीं रहा, किन्तु एकेश्वरवाद का जो इस्लामी सिद्धान्त था उसने हिन्दुओं की धार्मिक विचारधारा में नए प्राण फूँक दिए थे। इसी विचार से प्रेरणा पाकर रामानन्द, कबीर, नामदेव जैसे धर्मोपदेशकों ने कार्य किए।

भक्ति आन्दोलन की विशेषताएँ - ये निम्नलिखित हैं-

1. भक्ति की धारणा का अर्थ एकेश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है। भक्त की आराधना का उद्देश्य मुक्ति के लिए ईश्वर की कृपा प्राप्त करना है।

2. भक्ति पंथ ने उपासना की विधियों के रूप में कर्मकाण्डों तथा यज्ञों का परित्याग किया तथा ईश्वर की अनुभूति के सरल मार्ग के रूप में हृदय और मन की पवित्रता के स्थान पर मानववाद तथा निष्ठा पर बल दिया !

3. भक्ति आन्दोलन मुख्यतः एकेश्वरवादी पंथ था और भक्त एक ही ईश्वर की उपासना करते थे, जो या तो सगुण रूप में हो सकता था या निर्गुण रूप में। सगुणोपासक वैष्णव के रूप में प्रसिद्ध थे और कृष्णमार्गी और राममार्गी में विभक्त थे। इनके आराध्य राम या कृष्ण दोनों ही विष्णु के अवतार थे। निर्गुण मतानुयायी मूर्तिपूजा को नहीं मानते थे। वे कहते थे कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में निवास करता है।

4. दार्शनिक दृष्टि से सगुण और निर्गुण दोनों अद्वैत के औपनिषदिक दर्शन में विश्वास करते थे जिनमें विभिन्न भक्ति सन्तों ने कई भेद सुझाए थे।

5. उत्तर और दक्षिण भारत के भक्ति सन्त ज्ञान को भक्ति का एक तत्व मानते थे। चूँकि वह ज्ञान किसी शिक्षक या गुरु के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता था, अतः भक्ति आन्दोलन ने गुरू से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक जोर दिया।

6. भक्ति आन्दोलन समतावादी आन्दोलन था जिसने जाति या धर्म पर आधारित भेद-भाव का पूर्णतया विरोध किया। भक्ति आन्दोलन के सन्त सामाजिक एकता, मन, चरित्र तथा आत्मा की पवित्रता पर जोर देते थे और इसके पक्के समर्थक थे। भक्ति के द्वार निम्न वर्गों तथा अछूतों के लिए भी खुले हुए थे। भक्ति आन्दोलन के बहुत से सन्त निम्न वर्गों के थे।

7. भक्ति आन्दोलन ने पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व तथा कर्मकाण्डों की भी निन्दा की। भक्ति सन्तों अनुसार व्यक्ति निष्ठा और व्यक्तिगत प्रयास से ईश्वर की अनुभूति कर सकता है। अतः भक्ति आन्दोलन में यज्ञों तथा दैनिक कर्मकाण्डों के लिए कोई स्थान नहीं था।

8. भक्ति सन्तों ने जनसाधारण की सामान्य भाषा में उपदेश दिया और इसीलिए आधुनिक भारतीय भाषाओं जैसे हिन्दी, मराठी, बंगाली और गुजराती के विकास में अत्यधिक योगदान दिया।

प्रमुख भक्ति संत तथा सुधारक - प्रारम्भिक काल के भक्ति आन्दोलन के सन्त अधिकतर दक्षिण भारत से आए थे। दक्षिणी समूह के संबद्ध भक्ति आन्दोलन लोकप्रिय होने की अपेक्षा अधिक रूढ़िवादी था, लेकिन उत्तरी समूह के साथ ऐसी स्थिति नहीं थी। उत्तरी भारत के बहुत से सन्तों ने भक्ति सम्प्रदाय का अनुसरण किया। रामानन्द, कबीर, नानक तथा अन्य सन्त इसके केन्द्र बिन्दु थे। उत्तरी समूह के भक्त ब्रह्मज्ञान के गूढ़ प्रश्नों पर विचार नहीं करते थे। वस्तुतः उनके विचार एवं दृष्टिकोण विभिन्न दर्शनग्राही, उदार एवं सिद्धान्त-निरपेक्ष थे। नवीन भक्ति आंदोलन में जाति कोई आधार नहीं थी। बहुत से भक्त कवियों का जन्म निम्न जातियों में हुआ था। उनका सन्देश धनी और गरीब, उच्च तथा निम्न जाति, शिक्षित और अशिक्षित दोनों के लिए था।

रामानुज (बारहवीं शताब्दी) - ये भक्ति आंदोलन के प्रारम्भिक प्रतिपादक थे जो दक्षिण में बारहवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में सक्रिय रहे थे। उनके विचारों से लोगों के उत्थान के लिए शक्तिशाली जनान्दोलन की नींव पड़ी।

रामानन्द (पंद्रहवीं सदी) - ये उत्तरी भारत के प्रथम भक्ति सन्त थे। इन्होंने बिना किसी जन्म, जाति, धर्म या लिंग के भेदभाव के सभी के लिए भक्ति के द्वार खोल दिए। ये राम के उपासक थे। इनकी उपदेश की भाषा हिन्दी थी और वे मानव बंधुत्व में विश्वास रखते थे।

रविदास रैदास (पंद्रहवीं सदी) - ये रामानन्द के अति प्रसिद्ध शिष्यों में एक थे। ये जन्म से मोची थे लेकिन इनका धार्मिक जीवन जितना गूढ़ था उतना ही उन्नत और पवित्र था।

कबीर (1440-1510 ई.) - रामानन्द के अत्यन्त उग्र सुधारवादी शिष्य कबीर ने अपने सुप्रसिद्ध गुरु रामानन्द के सामाजिक दर्शन को सुनिश्चित रूप दिया। कबीर ने परस्पर विरोधी मतों में धार्मिक तथा राष्ट्रीय समन्वय लाने का गंभीर प्रयास किया। कबीर न तो तत्वज्ञानी थे न ही दार्शनिक | इनके विचार से हिन्दू तथा इस्लाम दोनों में जो कुछ भी पाखण्ड तथा कृत्रिम था, उसकी भर्त्सना करने के लिए इनमें पर्याप्त साहस था।

गुरुनानक (1469-1538) - अपने समय की उदार दृष्टि में पूरी तरह भाग लेते हुए नानक ने हिन्दू तथा मुस्लिम भक्ति को समान रूप से व्यक्त करने के लिए सक्षम धर्म की खोज की। इनके गीत व उपदेश 'आदिग्रन्थ' के रूप में संकलित हुए। गुरू नानक दोनों सम्प्रदायों को विभाजित करने वाली दीवार को ध्वस्त करके, उन्हें एकता के सूत्र में बाँधना चाहते थे।

चैतन्य (1486-1533 ई.) - इनके जन्म से पूर्व ही बंगाल में वैष्णव धर्म का पालन हो चुका था, परन्तु चैतन्य को बंगाल में आधुनिक वैष्णववाद, जिसे गौड़ीय वैष्णव धर्म कहा जाता है, का संस्थापक माना जाता है। इन्होंने सम्पूर्ण बंगाल और उड़ीसा में वैष्णववाद को लोकप्रिय बनाया।

मीराबाई (1498-1546 ई.) - नये मेड़ता के राणा रतनसिंह की पुत्री व राणा सांगा की पुत्रवधू थीं। पति की मृत्यु के बाद वे कृष्ण में रम गईं। कृष्ण भक्ति के कारण ख्याति मिली और सुदूर स्थानों से स्त्री-पुरुष व सन्त चित्तौड़ आने लगे। मीरा के गीत ब्रज व राजस्थानी भाषा में थे। मीरा के भक्तिगीत भावावेश तथा आध्यात्मिक परमानंद से युक्त थे।

बल्लभाचार्य (1479-1531 ई.) - बल्लभाचार्य का दर्शन एक वैयक्तिक तथा प्रेममयी ईश्वर की अवधारणा पर केन्द्रित है। ये पुष्टि (ईश्वर कृपा) और भक्ति (निष्ठा) के पथ पर विश्वास करते थे। इन्होंने कृष्ण को सर्वोच्च ब्रह्म, पुरुषोत्तम, और परमानन्द के रूप में देखा।

सूरदास (सोलहवीं - सत्रहवीं सदी) - सूरदास राधा व कृष्ण के भक्त थे। इनका विश्वास था कि मुक्ति केवल कृष्ण की भक्ति से ही प्राप्त की जा सकती है। सूरदास द्वारा ब्रजभाषा में लिखित कृष्ण भक्ति के पदों को इनके तीन ग्रन्थों सूरसारावली, सूरसागर एवं साहित्यलहरी में संकलित किया गया।

तुलसीदास (1589-1680 ई.) - तुलसीदास राम के उपासक थे तथा इन्होंने अपने इष्टदेव का आदर्श रूप चित्रित किया। इन्होंने रामचरितमानस, गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका आदि को लिखा।

अन्य सन्त - शंकरदेव, दादू, रजब, सुन्दरदास, मलूकदास, नरसी मेहता, जगजीवन, घासीदास, लालगिर, परिया साहेब, शिवनारायण, ज्ञानेश्वर, नागदेव, रामदास, एकनाथ, तुकाराम, गोविन्द प्रभु, भास्कर, विश्वनाथ, नारायण पण्डित तथा महादम्बा आदि ने विभिन्न क्षेत्रों में इस आन्दोलन को संवृद्धि प्रदान किया।

भक्ति आन्दोलन का प्रभाव - इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि भक्ति पंथ एक व्यापक आन्दोलन था जिसने भारत के समूचे महाद्वीप को कई शताब्दियों तक आन्दोलित किया। यह एक जन-आन्दोलन था तथा इसमें उनकी गहरी रुचि पैदा हुई। संभवतया बौद्ध-धर्म के पतन के उपरान्त हमारे देश में कभी कोई इतना अधिक व्यापक तथा लोकप्रिय आन्दोलन नहीं हुआ। यद्यपि अपने ईष्टदेव के प्रति इसमें प्रेम तथा भक्ति सम्बन्धी मूल सिद्धान्त पूर्णतया हिन्दू धर्म के ही हैं और देवत्व के एकता सम्बन्धी सिद्धान्त भी मुख्यतः हिन्दू धर्म के हैं जिन पर उसकी शिक्षाएँ निर्भर हैं, फिर भी इस आन्दोलन पर इस्लामी विश्वास तथा पद्धतियों का गहरा प्रभाव था। भक्ति आन्दोलन के दो मुख्य उद्देश्य एक हिन्दू धर्म का सुधार करना जिससे कि वह इस्लामी प्रचार और धर्म परिवर्तन के आघात को रोकने में सक्षम हो सके तथा दूसरा उद्देश्य हिन्दू धर्म तथा इस्लाम के बीच समन्वय स्थापित करना था, ताकि हिन्दू और मुस्लिम समुदायों में मैत्री सम्बन्ध स्थापित हो सके, पूरा किए जा सके। पूजा पद्धति को सरल बनाने तथा परम्परागत जातीय नियमों को उदार बनाने के उद्देश्य की प्राप्ति में यह आंदोलन पूरी तरह सफल रहा। हिन्दू जनता के उच्च तथा निम्न वर्ग के लोग अपने बहुत से दुराग्रह भूल गए तथा भक्ति सम्प्रदाय के सुधारकों के इस सन्देश में विश्वास करने लगे कि सभी लोग ईश्वर की दृष्टि में समान हैं तथा मुक्ति के लिए जन्म कोई बाधा नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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